हमराही

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Saturday, August 24, 2013

माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई

ख़्वाब पूरे हुए आस भी रह गई 
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई 

फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं   
माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई 

खैर तेरी खुदा से रही मांगती  
चाह तेरी मुझे ना मिली रह गई 

छोड़ कर तुम भँवर में न होना खफा 
घाव दिल को दिए जो छली रह गई 

आजमाइश तूने की अजब है सबब 
मांगने में कसर जो कहीं रह गई 

प्यार गुल से निभा बुल फिरे पूछती  
आरजू में बता क्या कमी रह गई 

घाव बुल को मिले हो गई अजनबी 
आरजू अब अधूरी पड़ी रह गई 

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