हमराही

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Saturday, October 19, 2013

शरद पूर्णिमा दोहे

शरदचन्द्र बरसा रहा ,अमृत चाँदनी आज
धवल केश लहरा रही, धरा पहनकर ताज ।।

शरदपूर्णिमा रात है, जैसे खिली कपास
सागर चंदा खेलते ,आज डांडिया रास ।।

रासोत्सव ले आ गया,शरद चाँदनी रात 
साजन से सजनी मिली,पाकर यह सौगात ।।

शरदोत्सव ले आ गया ,आश्विन कार्तिक मास 
शरद पूर्णिमा रात में ,मन छाया उल्लास ।।

शरदपूर्णिमा दे गई ,आकर यह सन्देश 
शारदीय ऋतु आ गई ,धर बसंत का वेश ।।
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