हमराही

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Saturday, June 21, 2014

मैं माँ हूँ

कभी कभी लेटे लेटे उठकर बैठ जाती 
क्योंकि ठिठुरने लगती मैं अचानक 
तो सोचती 
वो ऐसा क्यों हो ?
वो भी तो ध्यान रख सकता है मेरा 
जैसे मैं अहसास कर लेती हूँ 
जब भी सोये सोये लगता मुझे 
वो ठिठुर रहा है 
ओढाती उसे चादर 
वो जब पढ़ते पढ़ते सो जाता 
उतारती उसका चश्मा 
रख देती कहीं सुरक्षित जगह 
समेटती उसका सामान 
बिना कोई शोर किये 
ताकि वो सो सके आराम से 
फिर लगता मुझे 
अंतर है उसकी और मेरी प्रीत में  
क्योंकि वो बेटा है 
जो सीख रहा है अपनी जिम्मेदारी 
और मैं माँ हूँ 
जिसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास है 

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