हमराही

सुस्वागतम ! अपना बहुमूल्य समय निकाल कर अपनी राय अवश्य रखें पक्ष में या विपक्ष में ,धन्यवाद !!!!

Tuesday, September 22, 2015

मैं ऐसी क्यों हूँ ?

जानती हूँ
याद है उसे
बीते हुए लम्हे
बस छोड़ दी है उसने मेरी चिंता
चंद कर्तव्यों की खातिर
हर लम्हा कभी बयाँ करता था वो
मुझे अपना कहकर
कर गया है पराया आज
जब से कुछ भी बयाँ करना
लगता है उसे कहानी
क्यों रहती है मुझे
उसकी चिंता अब भी
हर दिन
हर पल
हर लम्हा
कभी कभी मन सोचता है
क्यों नहीं बदलती मैं भी
समय की धारा के साथ
लोगों की सोच के साथ
मैं ऐसी क्यों हूँ ??
......................

Thursday, September 17, 2015

पर्यूषण पर्व [दोहे]

पर्यूषण दोहे 
पर्यूषण का पर्व है ,रोज भजो नवकार |
अंतरमन को शुद्ध कर ,होंगे दूर विकार ||

महामंत्र नवकार है ,सुनना सुबह शाम |
सबसे अच्छे पर्व का, पर्यूषण है नाम ||

आठ दिनों तक जैन सब , करते हैं उपवास |
देता है शुभ प्रेरणा ,सदा भाद्रपद मास ||

'अटाई' के पर्व में ,करें नित्य उपवास |
पूजा औ आराधना , नित्य कर्म हैं ख़ास ||

हरना सबकी पीर को, तुम नाथों के नाथ |
मनोकामना पूर्ण हो ,सब की पार्श्वनाथ ||

अपराधी को माफ़ कर ,बनना सदा उदार |  
दंड,वैर सब छोड़कर , मन का करो सुधार ||


क्षमापना का दिवस है , करो वैर का अन्त |
दिल को रखना साफ़ तुम,कह गए साधु संत ||

आत्मा अपनी शुद्ध कर, छोड़ो द्वेष,असत्य |
सर्व धर्म समभाव का ,कथन तभी हो सत्य ||

संयम चिंतन नित्य कर ,औ' निर्जल उपवास 
तन मन अपना शुद्ध कर ,आया है दिन खास ||

जीयो जीने दो सदा ,अगर मनुज हो आप 
अहिंसा है परम धरम , हिंसा केवल पाप ||

Wednesday, September 16, 2015

पल पल हर पल

तुम पूछते थे हर पल,
बताते थे हर पल 
उस पल में खुश थी 
पूछते नहीं तुम अब ,
बताते नहीं तुम अब 
इस पल में भी खुश हूँ |

सिलसिले थे बातों के 
प्यार के जज्बातों के 
उस पल में खुश थी 
ख़त्म हुए सिलसिले 
आ गये शिकवे गिले 
इस पल में भी खुश हूँ |

मीठी यादों के वो पल 
थी खुशियो की हल चल 
उस पल में खुश थी
बीता है अब कल  
इंतजार के ये पल 
इस पल में खुश हूँ |

सब साँसों का खेला है 
ख़त्म फिर झमेला है

Monday, September 14, 2015

यादें [मुक्तक]


लफ़्ज मेरे हैं भीग गए जब यादें बरसी सारी रात 
शहर तेरे भी आती होगी यादों वाली यह बरसात 
नव पल्लव सी मुस्काती थी शाखाएं जो तेरे संग 
सूखे पत्तों सी बिखरी हैं पाकर यादों का आघात ।
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Wednesday, September 9, 2015

रूह ए परिंदा उड़ जायेगा एक दिन..

नेकियों के लिबास से ,ढक लो बदन तुम अपना 
भगवान के घर कपड़ों की दुकान नहीं है 
रूह बदलती है यहाँ रोज घरौंदा 
उसका कोई अपना मकान नहीं है |


मिट्टी से बने और मिट्टी में ही जा मिले
मिट्टी से अलग अपनी पहचान नहीं है 
रूह ए परिंदा उड़ जायेगा एक दिन
इस बात से अब कोई भी अनजान नहीं है |
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Thursday, September 3, 2015

एक शहंशाह का सफर

यश जी के जन्मदिवस पर .... 
हरमन प्यारा जो बना ,बाँटा प्यार अथाह |  
 शहंशाह कहते उसे ,शाहों का वो शाह ||

शहंशाह दिलों का 
शहंशाह वादों का 
शहंशाह इरादों का 
शहंशाह लकीरों का 
शहंशाह तकदीरों का 
शहंशाह भलाई का 
शहंशाह रहनुमाई का 
शहंशाह बहारों का 
शहंशाह सितारों का 
शहंशाह की तरह जिये
शहंशाह की तरह चल दिये
शहंशाह गुजर गया ,गुबार देखते रहे ....